Tuesday, 2 June 2020

Ratri bhojan ka Tyag

अनुप्रेक्षा
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◆ आयुर्वेद के हिसाब से भी ह्रदय कमल और नाभि कमल सूर्यास्त के बाद सुकुड़ जाता है।
 
◆ रात्रिभोजन त्याग करने से महीने में पंद्रह उपवास का फल मिलता है।

◆ रात को भोजन में कीड़ी आये तो बुद्धि का नाश, 
• जू आए तो जलोदर, 
• मक्खी आये तो उल्टी, 
• मकड़ी आये तो कोढ़ रोग,
• कांटा या लकड़े का टुकड़ा आये तो
 गले कि भयंकर वेदना,
• बिच्छू आये तो ताळवा विन्ध लेता हे,
बाल आये तो गले मे स्वर भंग...

◆ रात्रिभोजन करने में रोग और दोष दोंनो है.
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◆ "जैनदर्शन में कहा है रात्रिभोजन करने से तिर्यंचगति का बंध होता है.
-- धुवड, कौआ, बिल्ली, गीध, साबर, सर्प, बिच्छू, चंदन घो इत्यादि तिर्यंच के अवतार है.."
       *||  श्री  योगशास्त्र   ||*


👇 *अन्य दर्शन के मत से रात्रिभोजन महापाप के बारेमें   :-*

• "नरक के चार द्वारो में से प्रथम द्वार रात्रीभोजन है."
-- *पद्मपुराण - प्रभास खंड* --


• जो व्यक्ति मदिरा, दारू, मांस, रात्रीभोजन और कंदमूळ का भक्षण करता है, उनके तीर्थ यात्रा , जप-तप आदि निष्फळ जाते है.

• जो चौमासे में भी रात्रीभोजन करते है, उनकी शुद्धि चंद्रायन तप से भी नही होती।
*--  ऋषीश्वर भारत वैदिक दर्शन  --*


• हे सूर्यदेव ! आपके अस्त होने के बाद "पानी भी खून" के बराबर है।
*- कपोलस्त्रोत्र स्कंद पुराण और मार्कण्ड पुराण -*

• जो जीव रात्रीभोजन करता नही और चोमासा में भी रात को भोजन का त्याग करता है, उसे वर्तमान भव और पर-भव में सभी मनोरथ प्राप्त होते हे।
*- योगावशिष्ट पूर्वार्ध -*

• जो जीव सूर्यास्त के पहले भोजन करता है, उसे घर बेठे तीर्थयात्रा का लाभ मिलता है।
*- स्कंद पुराण -*
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◆ चिड़िया, तोता और दूसरे पक्षी भी रात को खाते नही ।

◆ रात को हृदय और नाभि के सुकुड़ जाने से और जठराग्नि मंद होने से रात को लिया हुआ खोराक पाचन नही होता।
पेट एकदम भारी हो जाता है.

◆ कबजियात, अजीर्ण, वायु से हार्ट अटेक, बेचेनी, आळस, शरीर मे दु:खावा, शर्दी, खराब ओडकर,  , उल्टी, भोजन में अरूचि, आंख का तेज कम होना, स्वभाव चीड़चीडा होना, आदि.. बहोत सारे रोगों का घर शरीर बन जाता है।

◆ भोजन पचाने के लिए जरूरी ऑक्सिजन सूर्य की हाजरी में मिलता है।
• सूर्य के अल्ट्रा वायलेट नाम की किरण की वजह से दिन में जीव बहार नही आते, 
जब कि सूर्यास्त होने के बाद जीव चारो और उड़ जाते है।

◆ डॉक्टर भी मेजर ऑपेरशन रात्रि में नही करते।

_*(संकलन- पू.सा.श्री.चित्तरंजना श्रीजी म.सा.)*_

【 रात्रिभोजन करने से जो तिर्यंच गति मिलती है, वो भी रात्रिभोजन त्याग से टल जाती है और परंपरा से नरक गति भी टलती है । 

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