मोक्ष का स्वरूप
निर्मल चारित्र धर्म की आराधना का अंतिम फल तो मोक्ष ही है । मोक्ष में ऐकांतिक, बाधारहित, स्वाभाविक, अनुपम और अक्षय सुख रहा हुआ है ।
यह संसार अनंत दुःखों से भरा हुआ है । जहाँ दुःख का पार नहीं है और सुख का नामों निशान नहीं है । जबकि मोक्ष अनंत सुख का धाम है, जहाँ सुख का पार नहीं है और दुःख का नामोनिशान नहीं है ।
मोक्ष में ऐकांतिक सुख है अर्थात् दुःख का अंश मात्र भी नहीं है ।
मोक्ष आत्मा की स्वाभाविक अवस्था रूप है । जीव का सहज स्वरूप मोक्ष में रहा हुआ है ।
*नमुत्थुणं सूत्र* में मोक्ष के 7 विशेषण बतलाए हैं-
*1) शिव :-* मोक्ष कल्याणकारी है ।
*2) अचल :-* मोक्ष का स्थान सदा के लिए अचल है और वहाँ रहे हुए सिद्ध भगवंतों को कभी भी विचलित होने का नहीं है ।
*3) अरुज :-* सिद्ध भगवंत आत्मा के कर्म के रोग से सर्वथा रहित हैं ।
*4) अनंत :-* मोक्ष में जाने के बाद वहाँ अनंत काल तक रहने का है ।
*5) अक्षय :-* मोक्ष का सुख कभी भी क्षय (नाश) पानेवाला नहीं है ।
*6) अव्याबाध :-* मोक्ष का सुख सर्वथा पीड़ा रहित है ।
*7) अपुनरावृत्ति :-* एक बार मोक्ष में जाने के बाद पुनः कभी संसार में लौटने का नहीं है ।
मोक्ष के इस स्वरूप को जानकर उसे पाने के लिए सदैव उद्यमशील बनना चाहिए ।
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*✒ लेखक : प. पू. आचार्य श्रीमद्विजय रत्नसेसूरीश्वरजी म. सा.*
*📙 संकलन : नीतेश बोहरा, रतलाम*
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