Wednesday, 13 May 2020

Delwada jain temple

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राजस्थान के माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा मन्दिर प्राचीन भारत की अद्भुत निर्माण कला का आश्चर्यजनक उदाहरण है। दिलवाड़ा मन्दिर बनने में 14 साल लगे। दिलवाड़ा जैन मंदिर को राजस्थान का ताजमहल भी कहा जाता है। 
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राजस्थान के माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा मन्दिर प्राचीन भारत की अद्भुत निर्माण कला का आश्चर्यजनक उदाहरण है। दिलवाड़ा मन्दिर बनने में 14 साल लगे।

इसके पीतलहर मन्दिर में ऋषभदेव की पंचधातु से बनी मूर्ति का वजन 4,000 किलोग्राम हैं। यहीं बने विमल वसही मन्दिर में लगी आदिनाथ मूर्ति की ऑंखें असली हीरे की बनी हुई हैं। मंदिर में चारों ओर कला के बेहद खूबसूरती से तराशे गए तमाम नमूने नजर आते हैं। 
करीब हजार साल पुराने ये मंदिर भारतीय कला का बेजोड़ नमूना माने जाते हैं।यहां स्थित पांच मंदिरों में से पहला विमल वसही 11वीं सदी में गुजरात के राजा के मंत्री विमल शाह ने बनवाया था, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव को समर्पित है। 

दूसरे मंदिर लूना वसही को 13वीं सदी में गुजरात के राजा के दो मंत्री भाइयों, वस्तुपाल और तेजपाल ने बनवाया। 
ऐसा कहा जाता है कि दोनों भाई परिवार सहित भगवान के दर्शन करने आए थे। रात होने पर उन्होंने महिलाओं के गहनों की सेफ्टी के लिए उन्हें गड्ढा खोदकर गाड़ना चाहा, तो उन्हें जमीन में ढेर सारा सोना गड़ा हुआ मिल गया। उन्होंने उसमें और पैसा मिलाकर यह मंदिर बनवाया। 

तीसरा पीतलहर मंदिर राजस्थान के भामाशाह ने बनवाया था। इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण इसमें लगी करीब 4 हजार किलो की पंचधातु की भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा है। 
कहा जाता है कि इस प्रतिमा में सैकड़ों किलो सोना भी इस्तेमाल हुआ है। दिलवाड़ा स्थित चौथा मंदिर भगवान पार्श्वनाथ का है। 

इस तीन मंजिले मंदिर के निर्माण में यहां काम करने वाले मजदूरों ने भी आर्थिक मदद की थी। जिन्हें मजदूरी के तौर पर संगमरमर पर काम करने से निकले चूरे के बराबर तोल का सोना मिलता था। 

पांचवां मंदिर महावीर भगवान का है। छोटा होने के बावजूद यह मंदिर कलाकारी के मामले में यह अद्भुत और अनूठा है। 

दिलवाड़ा जैन मंदिर को राजस्थान का ताजमहल भी कहा जाता है। दरअसल यह मंदिर पांच मंदिरों का समूह है। इस मंदिर का शिल्प और इसका वास्तुशिल्प इतनी सजीव है कि देखकर ऐसा लगता है कि मंदिर का वास्तु शिल्प अभी बोल उठेगा।
 
इस मंदिर में सफेद मार्बल का इस्तेमाल कर अद्भुत वास्तु शिल्प को उकेरा गया है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर 1100 साल पहले बना जिसका निर्माण गुजरात के वडनगर के बेहद कुशल इंजीनियरों और कारीगरों ने किया था। इस मंदिर के निर्माण में उस वक्त 18,53,00,000/- यानी कुल 18 करोड़ 53 लाख रुपए खर्च हुए।
1500 वास्तुशिल्प वाला यह अनोखा मंदिर 1200 मजदूरों ने 14 साल में बनाया। इसके निर्माण में जो भी मजदूर लगे थे उन्हें मजदूरी के रूप में सोना और चांदी दिया गया था। 
फिर 14 साल के बाद हर मजदूर करोड़पति हो चुका था । दिलवाड़ा जैन मंदिर में मजदूरों को लंच के लिए दो घंटे का समय दिया जाता था। लेकिन मजदूरों ने सिर्फ आधे घंटे को ही लंच में इस्तेमाल किया बाकी समय यानी डेढ़ घंटा उन्होंने मंदिर के निर्माण में लगाया। 
दिलवाड़ा जैन मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। 

मंदिर का एक-एक हिस्सा ऐसा तराशा हुआ है मानो ऐसा लगता है कि यह अभी बोल उठेगा। 
दिलवाड़ा जैन मंदिर देश के उन पांच मंदिरों में शुमार होता है जिसके निर्माण को अब भी रहस्य माना जाता है। इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि जब इसका निर्माण शुरु हुआ तब यहां बियावान जंगल थे। 

लिहाजा यह अनुमान लगाया जाता है कि इतने भारी भरकम संगमरमर और मार्बल के पत्थर को हाथी द्वारा लाया गया होगा। 

दिलवाड़ा जैन मंदिर कई नामचीन हस्तियों के दीदार का भी गवाह रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने भी इसका दीदार किया था। इसके बाद देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सहित कई सियासी हस्तियों ने इस मंदिर को देखने के लिए यहां आए थे। 

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