Wednesday, 13 May 2020

Bhateva parshwanath prabhu history

श्री भटेवा पार्श्वनाथ भगवान का इतिहास

५,८४,००० वर्ष पूर्व प्रभु नेमिनाथ प्रभु के काल की यह घटना । 
चंपानगरी के राजा प्रजापाल और मंत्री बुद्धिसागर अश्वपरिक्षा के लिये जंगल में पहुंच गये । वहां वह भयभीत हुए और उसी वक्त, नरघोष मुनि केवली बन, देशना दिये और तब उन्होंने प्रभु पूज़ा का अभिग्रह धारण किया ।

मंत्री ने वेलु के तमाकु वर्ण की २३ से. मी. की शासनदेवी युक्त 
प्रभु प्रतिमा बनाई । भक्ति भाव ने पद्मावती देवी को वज्रमय बनाया । राजा, प्रभु को पूजते हुए, भयमुक्त हुए, इसीलिए, नाम "भटेवा" पड़ा । इस नाम से नगर बसाया और मंदिर में प्रभु प्रतिमा पधराई । 

कुंतलपुर के राजापुत्र गुणसुंदर को, प्रभु के स्नात्रजल के प्रभाव से उनका अंधापा और गूंगापन दूर हुआ और वह राजा बने । फिर स्वविमान में प्रभु प्रतिमा को ले जाकर भटेवा के सुरचंद की अंतराय दूर करने के लिये यह प्रतिमा उन्हें दी । चमत्कारों को देख, इलादुर्ग राजा ने भी मांगी और फिर ऐसे प्रतिमा शेठ, यक्ष के पास से हो कर, चंद्रावती नगरी के रवचंद ने संकेत पा कर, प्रभु प्रतिमा के साथ, हीरा-माणेक मिलें और तब उन्होंने, चंद्रावती नगरी के भव्य मंदिर में सं १५३५ में, वैशाख सुद ३ को पधराई, बाद में संघ ने १८७२ में फाल्गुन सुद ३ को प्रभु प्रतिष्ठा की ।

चंद्रावती नगरी, आज़ का राजस्थान के आबु रोड़ पर स्थित चंद्रोटि गांव के नाम से जाना जाता है ।

बोलो श्री भटेवा पार्श्वनाथ प्रभु की जय ।

सोर्स ... मौलिक भाई

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