श्री शीतलनाथ भगवन
शीतलनाथ भगवान के 3 भव हुए है। पूर्व भव में प्रभु का आत्मा प्राणत नाम के विमान में था। वहाँ 20 सागरोपम का आयुष्य पूर्ण करके वहाँ रह कर मतिज्ञान , श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के साथ इक्ष्वाकुवंश के कश्यप गोत्र के मलय देश की भद्दीलपुर नगरी के राजा दढरथ की नंदादेवी राणीनी कुक्षी में चैत्र वद 6 के दिन धन राशि पूर्वाषाढा नक्षत्र में मध्यरात्रि च्यवन हुआ। तब माता ने 14 स्वप्न देखे।
प्रभु माता के गर्भ में 9 माह 6 दिन रहे। पोष वद 12 के दिन पूर्वाषाढा नक्षत्र में मध्यरात्रि जन्म हुआ। तब 56 दिक्ककुमारीकाओ ने आकर सूति कर्म किया। इन्द्रो ने मेरु पर्वत पर 1 करोड़ 60 लाख कलशों से प्रभु का जन्माभिषेक महोत्सव किया। प्रातः काल मे प्रभु के पिता ने जन्मोत्सव मनाया।
श्री शीतलनाथ प्रभु को जन्म से 4 अतिशय थे। प्रभु की दाई जांघ पर श्रीवत्स का लंछन था। कांचन वर्ण और 90 धनुष्य की काया थी। प्रभु 25000 पूर्व वर्ष कुमार अवस्था में रहे। 50000 पूर्व वर्ष राज्य पालन किया। प्रभु को 12 पुत्र थे।
नव लौकांतिक देव आकर प्रभु को तीर्थ स्थापना कर के जगत के हित - कल्याण - उद्धार करने की विनंती करते है। प्रभु एक वर्ष तक प्रत्येक दिन 1 करोड़ 8 लाख सोनैया ( सोना मोहर ) का दान देते है। भद्दीलपुर नगरी में से दीक्षा का वरघोड़ा निकलता है। प्रभु शुक्रप्रभा शिबिका में बैठकर सहस्राम्र वन में पधारते है। वहाँ अशोकवृक्ष के नीचे 5 मुष्ठीलोच करके छठ्ठ का तप करके 75 हजार पूर्व वर्ष की पिछली उम्र में पोष वद 12 के दिन धन राशि और पूर्वाषाढा नक्षत्र में 1000 लोगों के साथ दीक्षा ग्रहण करते है। तब प्रभु को चौथा मनपर्यवज्ञान होता है। दीक्षा के समय इन्द्र ने दिया हुआ देवदुष्य जीवन भर रहेता है। दीक्षा के बाद रिष्टपुर नगरी में तीसरे भव में मोक्षगामी पुनर्वसु के हाथों दीक्षा के दूसरे दिन खीर से प्रथम पारणा करते है। तब पंच दिव्य प्रगट हुए और साडे बारह करोड़ सोनैया ( सोना मोहर ) की वृष्टि होती है।
प्रभु दीक्षा के बाद प्रमाद निंद्रा किये बिना अप्रमत्त भाव से आर्य देश में विचरण करते हुए भद्दीलपुर नगर के सहस्राम्र उद्यान में छठ्ठ का तप करके पिलंखु वृक्ष के नीचे ध्यान में थे तब मार्गशीर्ष वद 14 के दिन पूर्वाषाढा नक्षत्र में केवलज्ञान प्राप्त हुआ। लोकालोक के सभी भावों को देखने और जानने लगे। 18 दोष से रहित हुए। 8 प्रातिहार्य और 34 अतिशय से युक्त हुए। तब देवों ने आकर समवसरण की रचना की। प्रभु मध्य सिंहासन पर बैठकर 1080 धनुष्य बड़े अशोकवृक्ष के नीचे बैठकर प्रभु ने संवर भावना को समझाते हुए 35 गुण से युक्त वाणी से देशना दी। देशना सुनकर अनेक स्त्री पुरूषों ने दीक्षा ली। नंद आदि 81 गणधर हुए।
प्रभु विचरण करते हुए समेतशिखर पधारते है। वहाँ मासक्षमण का तप करके कार्योत्सर्ग मुद्रा में 1000 साधुओं के साथ चैत्र वद 2 के दिन धन राशि और पूर्वाषाढा नक्षत्र में मोक्ष में गये। तब प्रभु का चारित्र पर्याय 25000 पूर्व वर्ष और 1 लाख पूर्व वर्ष का आयुष्य पूर्ण हुआ था। प्रायः प्रभु का शासन 9999900 सागरोपम _ 6626600 पूर्व वर्ष चला था। प्रभु के शासन में 1 दिन के बाद मोक्ष मार्ग शुरु हुआ था जो संख्यात पुरुष पाट परंपरा तक चला था। प्रभु के शासन में हरिवंश की उत्पत्ति अच्छेरा हुआ था। उत्तम पुरुषों 4थे विश्वानल रुद्र - प्रसिद्ध हरिषेण राजा और विश्वभूति हुए थे। प्रभु के भक्त राजा सीमंधर थे। प्रभु के माता पिता सनतकुमार देवलोक में गये थे।
No comments:
Post a Comment