Wednesday, 3 June 2020

SuParshwanath history

देवाधिदेव 7 वे तीर्थंकर श्रीसुपार्श्वनाथ भ.

श्री सुपार्श्वनाथजी के पूर्व भव
🥁1.धातकीखंड के पूर्व विदेह में सीता नदी के उत्तर तट पर सुकच्छ देश के क्षेमपुर नगर के राजा नंदीषेण ने गुरु अर्हंनंदन के पास दीक्षा ले कर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओं द्वारा तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया।

2.राजा नंदिषेण का जीव सन्यास से मरण कर मध्यम ग्रैवेयक के सुभद्र नामक मध्यम विमान में अहमिन्द्र हुआ।

3 काशी देश की बनारस नगरी में महाराजा सुप्रतिष्ठ की रानी पृथ्वीषेणा के गर्भ में भाद्रपद शुक्ला 6 के दिन अहमिन्द्र का अवतरण हुआ।🥁

⛺️ तीर्थंकर भगवानों के गर्भ,जन्म,दीक्षा, केवलज्ञान,मोक्ष पांचो कल्याणकके अवसर  जगतके जीवो के लिए अत्यन्त कल्याणकारी और मंगलकारी होते हैं।समस्त देव और मनुष्य इन अवसरोंपर विशेष प्रकार का उत्सव आराधना करते है।⛺️

तीर्थंकर भ.श्री सुपार्श्वनाथका जीवन परिचय

💚जन्मस्थान:जम्बूद्वीप के भारतवर्ष सम्बन्धी काशी देशकी बनारस नगरी,पिता:इश्वाकुवंशी राजा सुप्रतिष्ठ,
माता:रानी पृथ्वीषेणा, मध्य ग्रेवेयक से अहमिन्द्र अवतीर्ण हुए,गर्भकल्याणक तिथि:भाद्रपद शु.6,गर्भनक्षत्र:विशाखा

🌟जन्मकल्याणक तिथि:ज्येष्ठ शु.12,जन्म नक्षत्र: विशाखा,  

  श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का जन्म कल्याणक महोत्सव
 🌞श्री सुपार्श्वनाथजी के जन्म के समय तीनो लोकों में उद्योत, आनंद और सुख का प्रसार हुआ।अद्वितीय, सुन्दर, अपूर्व, अनुपम प्राकृतिक वातावरण में शीतल, मंद, सुगंधित वायु बहने लगी। पृथ्वी धन-धान्य से समृध्द हुई। प्रसन्न दिशामंडल, मनोहर आकाशमंडल में देव-दुंदुभि बजने लगी । वायुदेवने भुमंडल की शुध्दि की। मेघकुमारने गंधोदक की वृष्टि की। ऋतुदेवीने पंचवर्णी पुष्पोकी वर्षा की।

🌞स्वर्ग के इन्द्रों के आसन कंपायमान हुये। देवों के यहाँ घंटा,सिंहनाद, भेरी और शंख अपने आप बजने लगे। सभी देवोंने जिनबालक सुपार्श्वनाथ भगवानको नमस्कार किया और उनकी स्तुति की।

⭐️सौधर्म इंद्र की आज्ञा से सात प्रकार की देव सेना जन्म- नगरी बनारस में आई। सौधर्म इंद्र-इंद्राणी ने ऐरावत हाथी पर सवार होकर जन्मनगरी बनारस की 3 परिक्रमा की। सौधर्म और ईशान इंद्र ने क्षीर समुद्र के जल के 1008 कलशोंसे जिनबालक का अभिषेक महोत्सव किया। सौधर्म इंद्र ने हजारो नेत्रों से जिनबालक केसौम्य छवि का अवलोकन किया और भगवान का 'सुपार्श्वनाथ' नामकरण किया।

अन्य जानकारी:-
चिन्ह:स्वस्तिक,आयु:20 लाख पूर्व, 
कुमारकाल:5लाखपूर्व,राज्यकाल:14 लाख पूर्व+20पूर्वांग,
शरीर ऊंचाई:200 धनुष, शरीर वर्ण:हरित, चिन्ह:स्वस्तिक

💙वैराग्यकारण:ऋतु परिवर्तन पतझड़,
दीक्षा कल्यांणक तिथी ज्येष्ठ शु.12, दीक्षा समय:पूर्वाह्न, नक्षत्र:विशाखा,दीक्षा वन:सहेतुक,दीक्षावृक्ष:श्रीष,
दीक्षोपवास: 2(बेला), दीक्षाकाल:पूर्वाह्न,
सहदिक्षित मुनि:1000, दीक्षा पालखी:सुमनोगति, दीक्षास्थान:काशी,प्रथम आहार दाता:महेन्द्रदत्त,
प्रथम आहार का स्थान:सोमखेट नगर,छद्मस्थकाल:9 वर्ष

🌳तीर्थंकर भगवान का दीक्षा कल्याणक महोत्सव🌳


🌲ब्रह्म स्वर्ग से देवर्षि लौकांतिक देवोंने मर्त्यलोक में आकर तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ भगवान के वैराग्य की सराहना की।

🌴 चारों निकाय के देवों ने क्षीर समुद्र के जल से जिनराज सुपार्श्वनाथका दीक्षाभिषेक किया।
स्वर्ग से देवगणों द्वारा लायी सुमनोगति पालकी पर  जिनराज आरूढ़ हुए और जन्मनगरी बनारस के पास दीक्षा वन सहेतुक तक मनुष्य, विद्याधर, देवतागणने विशेष उत्सव पूर्वक पालकी को अपने कंधेपर रखकर जिनराज को लाया ।

🌿 तीर्थंकर प्रभु ने दीक्षा वन में रखी चंद्रकांतमणि की शिला पर विराजमान हो कर अपने वस्त्र-आभूषणों का त्याग किया , सिध्द परमेष्ठी को नमस्कार कर पंचमुष्ठी केशलोंच किया, सर्व प्रकार के सावद्य-पाप का त्याग कर परम सामायिक चारित्र को धारण किया, व्रत समिति गुप्ति आदि चारित्र के भेदों को धारण कर कुछ दिनों के उपवास के साथ श्री सुपार्श्वनाथ योगारूढ़ हुए।

☘️सौधर्म इंद्र ने भक्ति-भाव से तीर्थंकर के केशों का क्षीर समुद्र में विसर्जन हुआ। देवगण ने तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की पूजा- भक्ति की।वे अपने- अपने स्वर्ग को लौटे।

🍀दीक्षा धारण करते ही तीर्थंकर प्रभु को मनःपर्ययज्ञान की उपलब्धि हुई, तपोबल से अनेक ऋद्धियों की एकसाथ प्राप्ति हुई। प्रभु सुपार्श्वनाथ केवलज्ञान होने तक परीषहों और उपसर्गों को मौन रहकर सहज भाव से सहन करते हुए बाह्य और अंतरंग तपानुष्ठानोंमें अनुरक्त हुए

🌱तीर्थंकर प्रभु आत्म साधना की गहन भूमिका को प्राप्त कर समाधिस्थ हो कर केवल्योपलब्धि से विभूषित हुए।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

ज्येष्ठ सुदि बारस में जन्मे, सुरपति आसन कंपे।
देवगृहों में सबविध बाजे, स्वयं स्वयं बज उठते।।
जन्म न्हवन उत्सव विधिपूर्वक किया इंद्र सुरगण ने।
जन्मकल्याणक पूजा करते परमानंद हो क्षण में।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां श्रीसुपार्श्वनाथजन्मकल्याणकाय
नमः अर्घ्यं.......
⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️

ऋतु परिवर्तन देख विरक्ति ज्येष्ठ सुदि बारस मैं।
मनोगती पालकि सुर लाये प्रभु बैठे उस क्षण में।।
इंद्र सहेतुक वन में पहुँचे, प्रभु ने केश उखाड़े।
नमः सिद्ध कह दीक्षा धारी, पूजत कर्म पछाड़े।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां श्रीसुपार्श्वनाथदीक्षाकल्याणकाय
नमः अर्घ्यं.........
🌳🌲🌳

💛केवलज्ञान तिथि:फाल्गुन कृष्णा षष्ठी  यक्ष:विजय,यक्षी:पुरुषदत्ता

❤️मोक्ष कल्याणक तिथि:फाल्गुन कृष्णा सप्तमी, मुक्तिस्थान:श्री सम्मेद शिखरजी।

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