Saturday, 9 May 2020

Aadinath prabhu jivan katha

आदिनाथ प्रभु जीवन चारित्र : 

प्रथम भव : 

पश्चिम महाविदेह क्षेत्र में क्षितिप्रतिष्ठित नगर मे धनशेठ नामक शेठ था
एक बार वो धर्म धोष सूरीश्वर और गांव के लोगों को लेकर वसंतपुर की और चल पडा उसके साथ बैल गाडी धोडा ऊट भी साथ था l
रास्ते में बरसात के कारण जंगल में रूकना पडा
इस वजह से पानी और अन्न खलास हो गया 
दुख के कारण गुरु भः को भूल गए
एक रात्रि अर्धजागृत अवस्था में गुरु भः की याद आई
सबेरे जाकर देखा तो सब साधु भः साधना मे लिन थे ,जाकर धनशेठ ने सबकी माफी मांगी और गोचरी का लाभ देने को कहा
इस समय इसके पास दुसरा आहार न होने की वजह से बहुत भाव से धी वहोराया
और रोज जिनवाणी सुनने लगा
वसंतपुर पहुंच सब लोग अपने स्थान गये
धनशेठ अपने गांव आकर धर्म की सुदर आराधना करने लगा
आयुष्य पूर्ण होते नवकार मंत्र का जप करते मृत्यु हूआl
यह ऋषभदेव प्रभू का प्रथम भव

2 ) ऋषभदेव प्रभू  का दुसरा भव : 

गुरु वैयावच और धर्म के प्रभाव से धनशेठ का जीव जंबुद्रीप के मध्य में मेरू पर्वत के ऊतर दिशा में ऊतर कुरू क्षेत्र में युगलीक नर के रुप जन्म हुआ
यहा युगल को जन्म दे कर छ महिने के।बाद मां बाप मृत्यु हो देवलोक में जाते हैं
यहा उनपचास (49) दिन के बाद बालक मा बाप से स्वाधीन होता है l यहां ऋषभदेव प्रभू के दुसरे भव मे 3 पल्योपम आयुष्य पूर्ण कर देवलोक में च्यवन हुआ देवलोक मे जन्म नहीं होता है
पुष्प की शया मे बतिस वरस के युवा जैसा खडा होता है l

3) ऋषभदेव प्रभू का तीसरा भव : 

सौधर्म देवलोक मे आज एक आनंदमय बनाव हुआ जहां सुख समृद्धि अमाप है जहां सौंदर्य वाली देवांगना बार बार नृत्य करती है वहां 
उपपात खंड मे पुष्प से भरी शय्या की उपरवाली कंबल मे कंपन हुआ और एक युवा देव खडा हुआ
उसने अपने अवधि ज्ञान से अपना पूर्व भव देखा 
यह युवा ऋषभदेव प्रभू का तीसरा भव था
रंग राग मे बरसो निकल गये
और देव लोक के नियम अनुसार छः महिना आयुष्य बाकी रहते गले मे पहनी फुल की माला मुरझाने लगी
और आयुष्य पूर्ण होते यह देव ने पृथ्वी लोक में जन्म लेने का समय आ गया
इस तरह ऋषभदेव प्रभू का तीसरा भव पूर्ण 
हुआ l

4 ) चोथा भव महाबल : 

गंध समृद्धि नगर के राजा शतदल की रानी चंद्रकांता ने पुत्र को जन्म दिया उसका नाम रखा महाबल यह प्रभू का चोथा भव
महाबल बडा हुआ तो विनयवंति के साथ विवाह कर दियाऔर उसे राज सोप कर राजा रानी ने दीक्षा ली l
मित्रों की वजह से महाबल धर्म को भुल मौज शौक में मशगूल हो गया
यह देख मंत्रीश्वर स्वयबुध्धि को दुख हुआ और राजा को धर्म के राहपर लाने का अवसर ढुढने लगा
एक दिन राजा महाबल खुश था तब मंत्री ने मौका देखकर कहा राजन 
धर्म सुखो का कारण है और धर्म बिना जीवन सुन्न है 
तब दुसरा मंत्री बोला धर्म अधर्म जैसी कोई चीज नहीं है आप मौज शौक  मे मग्न रहो उसकी बात पे मत ध्यान दे l
तब मंत्रीश्वर खडा होकर बोले आपके माता पिता धर्म के राहपर चलते थे आप भी यह राहपर चलो
चर्चा सुनकर उसका आत्मा जागृत हुआ
और मंत्री जी की सलाह अनुसार दीक्षा अंगिकार की और ब 22 दिन का अनशन प्रभू भक्ति मे  लीन समाधि पूर्वक कालधर्म पामे
इस तरह पूर्व भव के संस्कार के कारण धर्म मे वापस आकर भव सुधर गया
इस तरह प्रभु का चोथा भव पूर्ण हुआ l

5) प्रभू का पाचवा भव : 

बार देवलोक में से दुसरा इशान लोक के श्वीपद नाम के विमान में ललितांग नाम के देव का च्यवन हुआ यह प्रभू का पाचवा भव
ललितांग ने अवधि ज्ञान से पूर्व भव देखा जिनालय जाकर प्रभू की पूजा भक्ति की
दिन बितने लगे और वो पत्नी स्वयप्रभा मे पागल बन गया
एक दिन पत्नी की मृत्यु होने से ललितांग विलाप करने लगा
तब दढधर्म नामक देव ने स्वयप्रभा के बारे मे।बताते हुए कहा
ऋषभदेव प्रभू 

6) छठ्ठा भव : 

लोहार्गल नगर के राजा सुवर्ण जंध राजा की रानी लक्ष्मी ने पुत्र को जन्म दिया
राजा ने नाम रखा वज्रजंध
वज्रजंध बडा हुआ तब श्वीमति नामक कन्या के साथ  विवाह कर
राजा रानी ने असार संसार को छोड दीक्षा ली और वज्रजंध राजा हुआ l
उसका पुत्र बडा हुआ तब वज्रजंध दुसरे राज्य पर चढाइ कर राज्य  जीत लिया
वापस आते वक्त दो केवल ज्ञानी मुनि मिला
उनकी देशना सुन नगर में पहुच कर दिक्षा लेने का  संकल्प किया
दुसरे दिन पुत्र को राज्य सोप दिक्षा लेने के भाव से सो गए लेकिन कुदरत ने कमाल कर दिया
राजकुमार को राज्य लेने की लालसा हुइ और स्वार्थ मे अंध पुत्र ने यह सो रहे थे वहां झेरी धुआं जलाया इसकी वजह से दोनों की मृत्यु हुई
लेकिन दिक्षा के भाव की वजह से कुरु क्षेत्र में युगलीक बने इस तरह ऋषभदेव प्रभू का छठा भव पूर्ण हुआl
ऋषभदेव प्रभू का सातवां भव :
उत्तर कुरू क्षेत्र में युगलीक ने जन्म लिया
यह युगलीक ललितांग देव के भव मे पति पत्नी थे वज्रजंध के भव मे साथ थे और युगलीक भी साथ में जन्म लिया
यह हे संसार की माया जिसने प्रभू को भी न छोडाl
यह दोनों युवा होते युगलीक धर्म अनुसार पति पत्नी बने l
यहां जो ईच्छा होती वो कल्पवृक्ष पूर्ण करते जैसे
मधांग कल्पवृक्ष मध देते
तुर्याग वाजित्र देते थे
भृगाग के पास बरतन मिलता
दीप शीखा दिपक का काम करते
ज्योतिष्कांग बहुत प्रकाश देते
चित्राग के पास पुष्प माला और
मण्यंग आभूषण देता
चित्ररस मनवांछित खाना देते
गेहकार धर और
अनाग्नय वस्त्र
इस तलह भोग सुख में आयुष्य पूर्ण होते देव देवी हुए l

8) प्रभू का आठवा भव :
सौधर्म नामक देव लोक में एक देव और देवी का च्यवन हुआ l
एसे देवलोक में जन्मो से राग के कारण दोनों का पती पत्नी के रुप जन्म हुआl
आयुष्य खतम होने मे छे महिना बाकी रहा तब ऊसके गले की फुल की माला सुकने लगी
और आयुष्य पूर्ण होते देव भव पूर्ण हुआ
एसी तरह ऋषभदेव प्रभू का आठवा भव पूर्ण हुआ और वैध जिवानंद के नाम नवमा भव हुआ

9) ऋषभदेव प्रभू का नवमा भव :
क्षितिप्रतिष्ठित नगर मे जिवानंद वैध के नाम प्रभू का नवमा भव हुआ और उसकी पत्नी शेठ पुत्र केशव हुआ उसका महीधर सुबुधि पूर्णभद् और गुणाकर भी मित्र था यह छ मित्र साथ में बडा हुआ एक दिन यह छ मित्रो ने कृष रोगी मुनि को देख जिवानंद उनका उपचार करने के लिए तैयार हुए दवा बनाने के लिए वो एक शेठ की दुकान पर गोशीर्षचंदन और रत्नकंबल लेने गए l

इस चीज का उपयोग मुनि का रोग दूर करने के लिए है यह मालूम होते बहुत आग्रह करने पर भी पैसा नहीं लिया और यह सबके कार्य की अनुमोदना की l

यह सब चीज लेकर छे मित्र जहा मुनिराज काऊसग ध्यान में खडे थे वहा आए
मुनि भः की अनुमति ले कर
जिवानंद ने अपने पास था वो लक्षपाल तेल उसके शरीर पर लगा कर रत्नकंबल शरीर पर रखी दवा की वजह से कृष रोग के कृमि रत्नकंबल में आगये यह जिवो को गाय के कलेवर मे संक्रित किया l
 ऐसे दो बार करने से मुनि भगवंत की काया निरोगी हो गइ बाद में मुनि भगवंत की शाता के लिए शरीर पर गोशीर्षचंदन का विलेपन कर मुनि भगवंत को वंदन किया बाद में बाकी रही चीजो को बेच आयी मुद्रा में सुर्वण डाल शिखर बंध जिनालय बनवाया l

प्रभू की भक्ति करते भाव जागृत होने से  दीक्षा ली l सयंम जिवन जीवन की सुंदर की आराधना करते आयुष्य काल पूर्ण होने वाला जाण छे मित्रो ने अनशन कर नवकार मंत्र का जाप करते कालधर्म पामे l

10)  प्रभू का दसवा भव  महाविदेह क्षेत्र में हुआ
ऋषभदेव प्रभू के जन्म की पूर्व भूमिका तिसरा आरा का एक पलयोपम का आठवा भाग बाकी रहा तब एक युगलीक का जन्म हुआ युवा होते वो पति पत्नी बन गये यह युगल जा रहा था तब एक श्वेत वर्ण चार दंत वाला हाथी सामने आया और पूर्व भव के सबंध से हाथी ने पुरुष को सुढ से उठाकर अपने ऊपर बैठा दिया यह देख सब युगलीको ने ऊसको भाग्यशाली मान विमल वाहन नाम रख उनकी आज्ञा मानने लगे विमल वाहन ने युगलीक को दंड देने के लिये हकार निति चालु की उसका आयुष्य पूर्ण होते उसके पुत्र चक्षुष्मा कुलकर बने उसके आयुष्य पूर्ण होते यशस्वी कुलकर बने हकार निति के साथ उसने मकार निति चालू की बाद मे अभिचंद्र और इसके बाद प्रेसेनजित कुलकर बने उसने हकार मकार निति के साथ ध्धिकार निति चालु की इसका आयुष्य पूर्ण होने के छे महिना पहले नाभी और मरूदेवा युगलीक को जन्म दिया l..✍

No comments:

Post a Comment

Mahabalipuram

...........*जिनालय दर्शन*........... *महाबलीपुरम तीर्थ* लॉकडाउन के चलते हमारी कोशिश है कि प्रतिदिन आपको घर पर प्रभु दर्शन करा सकें। आज हम आप...