वैशाख सुद १० प्रभु वीर के केवल कल्याणक और वैशाख सुद ११ जिनशासन स्थापना दिवस सम्बन्धित कुछ बातें, पाठ के माध्यम से ले रही हूँ। भूलचूक हो तो क्षमा किजीयेगा ।
क्षमा वीरस्य भूषणम्
ऊँ ह्रीं श्री महावीर पारंगताय नम:
बोलो त्रिशला नंदन वीर की जय
प्र १) प्रभु वीर के केवल-कल्याणक की तिथी ?
उ १) वैशाख शुक्ल १०
प्र २) प्रभु वीर के केवल प्राप्ति स्थान को, आज़ कौन से तीर्थ के नाम से जानते है ?
उ २) ऋज़ुवालिका तीर्थ
प्र ३) केवल-प्राप्ति जिस जगह हुई, उस गांव का नाम ?
उ ३) जृम्भक गाव
प्र ४) प्रभु वीर का छद्मस्थ काल कितना ?
उ ४) १२ वर्ष, छ मास, एक पक्ष (१२ वर्ष, साढ़े छ महिने या १२ वर्ष, १३ पक्ष (पखवाड़िये)
प्र ५) छद्मस्थ अवस्था में प्रभु वीर ने १० स्वपन कहां, किस स्थान पर देखें ?
उ ५) क्षूलपाणी यक्ष के मंदिर में दो घडी की निंद्रा में ।
प्र ६) प्रभु के १० स्वप्नों की बात जिसने अपने ज्ञान के माध्यम से जानी, उनका नाम ?
उ ६) उत्पल निमितज्ञ ने जानी ।
प्र ७) १० स्वप्नो में से कौन से स्वप्न का फल, उत्पल निमितज्ञ नहीं जान सके थे ?
उ ७) चौथा स्वप्न - सुगंधी पुष्प की दो माला, इस स्वप्न का फल नहीं जान सके थे, जो प्रभु वीर ने उन्हें, उनके पूछने पर, समझाया था ।
प्र ८) छद्मस्थ अवस्था में देखे गये इस चौथे स्वप्न का फल बतायें ।
उ ८) स्वप्नफल था कि, "साधुधर्म व श्रावकधर्म की प्ररुपणा करेंगे"
प्र ९) केवलप्राप्ति के बाद प्रभु की प्रथम देशना निष्फल गई, तो वह कौन से दो कारण है, जिससे हम यह कह सक्ते है ?
उ ९) ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि, प्रथम देशना के अंत में सप्रथम तो १) सर्वविरति और २) देशविरति ग्रहण करनेवाला कोई नहीं था । और यह एक अच्छेरा हुआ ।
प्र १०) प्रभु वीर ने दूसरे दिन, वैशाख सु ११ को, दूसरी बार देशना दी तब ऐसा क्या हुआ, जिससे हम जैन धर्म को आज़ पामे है और इस धर्म के मार्ग पर चल पाये है ?
उ १०) वैशाख सुद ११ को, ११ ब्राह्मणों समेत उनके ४४०० शिष्यो ने, चंदना आदि अनेक कन्याओं ने, प्रभु वीर के हाथो देशना के अंते, सर्वविरति धर्म, चारित्र ग्रहण किया, और प्रभु ने ऐसे, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका यह चतुर्विध संघ की स्थापना की, जिसे हम "जिनशासन की स्थापना" भी कहते है ।
प्र ११) जिनशासन की स्थापना का मतलब क्या है ?
उ ११) क्योंकि, इस शासनकाल में, व्यक्तियों का समूह, उस शासनकाल के समय के अंतर्गत, अरिहंत परमात्मा की आज्ञा का पालन करता है, इसलिए, शासन की स्थापना जरुरी होती है। जिनशासन में चतुर्विध संघ के रुप में, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका संघ की स्थापना होती है।
अभी हम सब प्रभु वीर के शासनकाल में रह रहे है ।
प्र १२) क्या जिनशासन की स्थापना सिर्फ एक ही बार हुई है या और भी ? यह प्रथा कब से शुरु हुई ?
उ १२) जिनशासन की स्थापना शाश्वत है और अनादि अनंत काल से होती आई है ।
प्र १३) प्रभु वीर ने ११ ब्राह्मणों को दिक्षित कर, गणधर रुपे क्यों स्थापा था ? वज़ह ?
उ १३) प्रभु ने ११ गणधरो को त्रिपदी दी, जिसके आधार पर, उन्होंने १२ अंग, द्वादशांगी की रचना की, इसलिए, प्रभु ने उन्हें गणधर पद पर स्थापा ।
प्र १४) प्रभु वीर ने चंदनाजी को किस पद पर स्थापा ?
उ १४) प्रवर्तिनी पद पर
प्र १५) वीर प्रभु के गण कितने हुए ?
उ १५) नौ गण हुए ।
प्र १६) गण का मतलब क्या ?
उ १६) एक वाचनावाले साधु के गण को, एक गण कहते है । वाचना - सूत्रवाचना
प्र १७) प्रभु के ११ गणधर तो गण नौ ही क्यों हुए ?
उ १७) ११ गणधर होने के बावजूद, सूत्रवांचना की अपेक्षा, वीर प्रभु के गण, नौं ही हुए, क्यों कि, सात गणों ने तो अपनी अलग अलग सूत्रवांचना की थी, पर, बाकी चार गणों में से, अकंपितजी और अचलभ्राताजी का एक गण माना गया एवं मेतार्यजी और प्रभास जी का भी एक ही गण माना गया क्योंकी इनकी परस्पर समान सूत्रवाचना हुई थी और इसलिए नौं गण बनें ।
प्र १८) "आणाजुत्तो संघो" इस का मतलब क्या है ?
उ १८) संघ वह है, जिसके पास यानि जो आज्ञा से युक्त है । चतुर्विध संघ मतलब साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका का समुदाय (वृंद)
प्र १९) शासन कितने प्रकार के ?
उ १९) चार प्रकार के
प्र २०) कौन कौन से प्रकार का शासन है ? नाम ?
उ २०) १) द्रव्यशासन २) भावशासन, ३) व्यवहारशासन व ४) निश्चयशासन
प्र २१) प्रभु की आज्ञा रुप द्रव्यशासन को ही हम जो आधारभूत मानें, तो क्या वह परिणमित होगा ?
प्र २१) नहीं, द्रव्यरुप प्रभु की वाणी सुन लेने, पढ़ लेने मात्र से, परिणाम नहीं मिलेंगे, जब तक उसे भाव यानि भावशासन का सहयोग़ नहीं मिलेगा ।
प्र २२) निश्चय और व्यवहार शासन में मुख्य, प्रधान कौन और क्यों ?
उ २२) निश्चय यानि प्रभु की कोई भी एक आज्ञा के पालन का निश्चय करना और यह प्रधान रुपे है । जब निश्चय होता है तब व्यवहार यानि कैसे उस आज्ञा अनुरुप वर्ता जाये, वह आचरण हमें करना होता है, वह है व्यवहारशासन ।
प्र २३) प्रभु वीर तो कोई आक्रमक नहींं थे फिर उनको, व्यवहार की द्रष्टि से, (लांछन की नहींं), सिंह की उपमा किस कारण दी जा सक्ती है ?
उ २३) जैसे सिंह की गर्ज़ना से, वन में दूर दूर तक वातावरण शांत हो जाता है, सभी पशु पक्षी अपनी अपनी जगह स्थिर हो जाते है, वैसे ही, प्रभु वीर की वाणी का प्रभाव सारे आर्यवर्त में फैला ।
उपसर्गो का भी सिंह की भांति, तटस्थ होकर, स्वयं से ही जझ़ुमते हूए, सहन किया, वह भी निर्लेपीरुपे, इसीलिए, उनकी तुलना सिंह से की जा सक्ती है ।
प्र २४) प्रभु वीर ने शंका लिए आये हुए गौतमस्वामी को कहा कि, "यज्ञ मैनै भी किया है"। तब प्रभु किस यज्ञ की बात किये थे ?
उ २४) आत्म-यज्ञ की
प्र २५) प्रभु वीर की दूसरी देशना किस उद्यान में चल रही थी ?
उ २५) महासेन उद्या
प्र २६) इंद्रभूति के यज्ञ के यजमान कौन थे ?
उ २६) सौमिल ब्राह्मण
प्र २७) प्रभु ने देशना में यह जगत दो तत्वों का मेल है, यह कहा था, यह दो तत्व कौन से ?
उ २७) जीव तत्व (चेतन) और अजीव तत्व (जड़) का मेल है ।
प्र २८) इन दोनो तत्वो को चलायमान करता कौन सा त्रिसूत्र है, जिससे यह बंधे हुए है और जिस पर प्रभु ने त्रिपदी दी थी ?
उ २८) त्रिसूत्र - उत्पाद, व्यय और ध्रिव्य । त्रिपदी - उपन्नेईवा, विगमेईवा, धुवेईवा
प्र २९) प्रभु वीर के समय में कितनी व्यक्तिओने तीर्थंकरनामकर्म का बांध किया ? सबके नाम एक साथ उत्तर में लिखे ।
उ २९) नौ व्यक्तिओने
१) श्रेणिक राजा २) प्रभु वीर के काका सुपार्श्वजी ३)पोटिला अणगार (साध्वीजी) ४) उदायन राजा ५) महाशतक श्रावक ६) शंख श्रावक ७) अंबड़ सन्यासी ८) सुलसा श्राविका और, ९) रेवती श्राविका
प्र ३०) प्रभु वीर का शासन उनके निर्वाण काल से कब तक का और कितना है ।
उ ३०) निर्वाण काल से २१००० वर्ष तक का, पांचमे आरे के शेष तक का है ।
जिनाज्ञा विरुद्ध जो कुछ लिखा गया हो तो मन, वचन, काया से त्रिविधे मिच्छामी दुक्कड़़ं ।
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