जब आदिश्वर दादा की प्रतिमा जी पालीताना जी से वापस अपने पूर्व प्रतिष्ठित स्थान पर खुद लौट कर आयी थी।
श्री लोटाणा तीर्थ-
तीर्थ का संक्षिप्त परिचय प्राचीन काल में ९४ मंदिर थे,जैन परिवारों के १०००० घर थे,नगर की विशालता आबू तक फैली थी,एक बार आचार्य प्रवर कमलसूरिश्र्वरजी का अपने विशाल श्रमण-श्रमणी वृंद के साथ नगर मे चातुर्मास था,चातुर्मास पूर्ण होने पर आचार्य भगवंत ने नगर जनों को अपने उपदेश में बताया कि आप सभी तीन दिनों में खाली कर दो,लोगों ने नगर खाली कर दिया।कुछ लोग वहीं रहें पर नगर में भूकंप आने से सभी मंदिर नष्ट हो गएँ व बचे सभी लोग मारे गये व नगर समाप्त हो गया ।कालान्तर मे श्रेष्ठिवर्य जावडशा शेठ (जिन्होंने शत्रुंजय गिरिराज का तेरहवा उद्धार करवाया था)नगर कीआदिश्वरजी भगवान की प्रतिमा शत्रुंजय गिरिराज पर स्थापित करवा थी,जावडशा शेठ को रात्रि स्वप्न में कहा कि मेरा यहा जी नहीं है,सुबह जा कर देखा वहा वे प्रतिमाजी नहीं थी, प्रतिमाजी तीन कदम में स्वत:आकर यही स्थापित होने से इस गाँव का लोटनपुर पडा जो समय के साथ अपभ्रंश होकर "लोटाणा" हो गया।।लोटाणा में एक और विधान है कि यहां जिनालय की ध्वजा के दर्शन कर तीन बार लोटनें से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो कर सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।देवभूमि के जिनालयों में प्रतिष्ठित लगभग प्रतिमाएं संप्रति महाराजा कालिन है।।दोनों तीर्थों की व्यवस्था "श्री दैवस्थान जैन पेढी नांदिया जिला सिरोही दूरभाष न 941132695 के अधिनस्थ है।।सभी धर्मप्रेमी बंधुओं से विनम्र निवेदन है कि "देवभूमि के जिनालयों के दर्शन वंदन कर अपने को धन्य बनाये ।।जयजिनेन्द्र ।।
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