Saturday, 9 May 2020

Jain shasan ka amar Itihas

जैन शासन का अमर इतिहास:-

~लंकापति रावण के महल में गॄह मंदिर था जिसमे नील रत्न से बनी श्री मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा थी ।जहा पर रोज रावण जिन्भक्ति करता था।

~रावण ने अष्टापद पर्वत पर जिन्भक्ति करते हुए तिर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया।

~सूरी सम्राट बप्पभटट सूरी सदा आकाशगामिनी विद्या से सीद्धाचल गिरनार मन्थुरा भरूच तथा गोपालगिरी की यात्रा दर्शन कर आहार पाणीं करते थे।

~श्रेणिक राजा हररोज जिस दिशा से प्रभु विचरते थे उस दिशा में सात कदम आगे जाकर सुवर्णजव से सवस्तिक करते थे।

~सम्प्रति महाराजा श्री आर्यरक्षितसूरी म.सा.की प्रेरणा से हररोज एक नए जिनालय के खनन मुहूर्त समाचार प्राप्त होने पर ही भोजन करते थे।

~पुज्यवादी देवसुरी म.सा.ने साड़े तिन लाख लोगो को जैन बनाया।

~राजा विक्रम ने एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा से सिद्धसेन दिवाकर सुरीजी का गुरुपूजन किया।

~कुमारपाल राजा ने अपने जीवन के अंतिम चोदह वर्ष में साधर्मिक भक्ति में 14करोड़ सोना मोहोरो का वापर किया।

~आचार्य पादलिप्तसूरी ने10साल की छोटी उम्र में आचार्य पद प्राप्त किया।

~मंत्रिशवर पेथडशाह की धर्म पत्नी जिन्मंदिर जाते समय हमेशा सवाशेर सुवर्ण का दान करती थी।

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